हर बीमारी के लक्षण स्वाइन फ्लू का आयुर्वेद से इलाज संभव है। आयुर्वेद चिकित्सा के प्रभाव से स्वाइन फ्लू का इलाज तो संभव है ही साथ ही इससे प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
स्वाइन फ्लू इलाज संभव है जैसे हर बीमारी के लक्षण अलग-अलग होते है ठीक वैसे ही हर बीमारी का इलाज भी उनके लक्षणों के आधार पर अलग-अलग होता है। स्वाइन फ्लू इतना ही नहीं वायरस से फैलने वाली बीमारियों के लक्षण चाहे एक हो लेकिन उनका इलाज अलग-अलग होता है।
स्वाइन फ्लू स्वाइन फ्लू का इलाज हर पैथी से संभव है। स्वाइन फ्लू का आयुर्वेद से इलाज संभव है। आयुर्वेद चिकित्सा के प्रभाव से स्वाइन फ्लू का इलाज तो संभव है ही साथ ही इससे प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद मिलती है। जाने आयुर्वेद से स्वाइन फ्लू चिकित्सा कितनी प्रभावी है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति आमतौर पर काफी प्रभावी है। इसके जरिए कई इलाज आसानी से संभव है। स्वाइन फ्लू को आयुर्वेद में जहां जनपदोध्वंस नाम से जाना गया है। वहीं आयुर्वेद के विशेषज्ञ स्वाइन फ्लू के लक्षणों को आयुर्वेद की प्राचीन संहिताओं में वर्णित वात श्लेष्मिक ज्वर लक्षणों के निकट मानते हुए उसे स्वाइन फ्लू के बराबर का रोग बताते हैं।
घातक स्वाइन फ्लू का उपचार भी वात कफ और ज्वर के तहत आयुष औषधियों से कारगर है।
स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए हल्दी और नमक उबालकर गुनगुने पानी से गरारे करने चाहिए।
स्वाइन फ्लू के दौरान गर्म पानी से हाथ-पैर धोएं और अधिक से अधिक सफाई रखें।
चिकित्सा पद्वति स्वाइन फ्लू में इलायची तेल की एक-दो बूंदें रूमाल पर डालकर ,नीलगिरी नाक पर रखनी चाहिए।
आयुर्वेद चिकित्सा स्वाइन फ्लू के लिए तुलसी ,अदरक को पीस कर शहद के साथ सुबह खाली पेट चाटना चाहिए।
आयुर्वेद चिकित्सा के प्रभाव के लिए कुछ औषधियों का भी प्रयोग करना चाहिए। औषधियों में त्रुभवन कीर्ति रस, लक्ष्मी विलास रस, संजीवनी बूटी, गुड़ ज्यादि के काड़े का सेवन करना चाहिए।
स्वाइन फ्लू से बचाव और इलाज के लिए प्रतिरोधक क्षमता आवश्यक है। यदि प्रतिरोधक क्षमता अधिक है तो रोगी स्वाइन फ्लू से आसानी से निजात पा सकता है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति में स्वाइन फ्लू के लक्षणों में शरीर में सर्दी जुकाम, शिरा शूल, खांसी,भारीपन, बुखार और जोड़ों में पीड़ा होना है।
तीव्रावस्था में स्वाइन फ्लू जानलेवा भी हो सकता है। इस अवस्था विशेष को आयुर्वेद में 'मकरी' नाम से जाना जाता है।
गले में खराबी, नाक और आंखों से पानी बहना, ज्वर तथा खांसी आदि लक्षण वाले मरीजों का उपचार वात, कफ तथा ज्वर में काम आने वाली आयुर्वेदिक औषधियों से किया जाने लगा है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने वाली औषधियां - गुड़ची, काली तुलसी, सुगंधा आदि का प्रयोग करना चाहिए।
स्वाइन फ्लू विशिष्ट उपचार के लिए पंचकोल कषाय, निम्बादि चूर्ण, संजीवनी वटी, त्रिभुवन कीर्ति रस, गोदंति भस्म और गोजिहृदत्वात् औषधियां
स्वाइन फ्लू रोगी को सुबह तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, गिलोय के सम्मिश्रण और मधु से बना काढा देना चाहिए।
रोगियों को दही, शीतलपेय, फ्रिज में रखा बासी भोजन, आईसक्रीम जैसे कफ उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थों से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
स्वाइन फ्लू इलाज संभव है जैसे हर बीमारी के लक्षण अलग-अलग होते है ठीक वैसे ही हर बीमारी का इलाज भी उनके लक्षणों के आधार पर अलग-अलग होता है। स्वाइन फ्लू इतना ही नहीं वायरस से फैलने वाली बीमारियों के लक्षण चाहे एक हो लेकिन उनका इलाज अलग-अलग होता है।
स्वाइन फ्लू स्वाइन फ्लू का इलाज हर पैथी से संभव है। स्वाइन फ्लू का आयुर्वेद से इलाज संभव है। आयुर्वेद चिकित्सा के प्रभाव से स्वाइन फ्लू का इलाज तो संभव है ही साथ ही इससे प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद मिलती है। जाने आयुर्वेद से स्वाइन फ्लू चिकित्सा कितनी प्रभावी है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति आमतौर पर काफी प्रभावी है। इसके जरिए कई इलाज आसानी से संभव है। स्वाइन फ्लू को आयुर्वेद में जहां जनपदोध्वंस नाम से जाना गया है। वहीं आयुर्वेद के विशेषज्ञ स्वाइन फ्लू के लक्षणों को आयुर्वेद की प्राचीन संहिताओं में वर्णित वात श्लेष्मिक ज्वर लक्षणों के निकट मानते हुए उसे स्वाइन फ्लू के बराबर का रोग बताते हैं।
घातक स्वाइन फ्लू का उपचार भी वात कफ और ज्वर के तहत आयुष औषधियों से कारगर है।
स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए हल्दी और नमक उबालकर गुनगुने पानी से गरारे करने चाहिए।
स्वाइन फ्लू के दौरान गर्म पानी से हाथ-पैर धोएं और अधिक से अधिक सफाई रखें।
चिकित्सा पद्वति स्वाइन फ्लू में इलायची तेल की एक-दो बूंदें रूमाल पर डालकर ,नीलगिरी नाक पर रखनी चाहिए।
आयुर्वेद चिकित्सा स्वाइन फ्लू के लिए तुलसी ,अदरक को पीस कर शहद के साथ सुबह खाली पेट चाटना चाहिए।
आयुर्वेद चिकित्सा के प्रभाव के लिए कुछ औषधियों का भी प्रयोग करना चाहिए। औषधियों में त्रुभवन कीर्ति रस, लक्ष्मी विलास रस, संजीवनी बूटी, गुड़ ज्यादि के काड़े का सेवन करना चाहिए।
स्वाइन फ्लू से बचाव और इलाज के लिए प्रतिरोधक क्षमता आवश्यक है। यदि प्रतिरोधक क्षमता अधिक है तो रोगी स्वाइन फ्लू से आसानी से निजात पा सकता है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति में स्वाइन फ्लू के लक्षणों में शरीर में सर्दी जुकाम, शिरा शूल, खांसी,भारीपन, बुखार और जोड़ों में पीड़ा होना है।
तीव्रावस्था में स्वाइन फ्लू जानलेवा भी हो सकता है। इस अवस्था विशेष को आयुर्वेद में 'मकरी' नाम से जाना जाता है।
गले में खराबी, नाक और आंखों से पानी बहना, ज्वर तथा खांसी आदि लक्षण वाले मरीजों का उपचार वात, कफ तथा ज्वर में काम आने वाली आयुर्वेदिक औषधियों से किया जाने लगा है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने वाली औषधियां - गुड़ची, काली तुलसी, सुगंधा आदि का प्रयोग करना चाहिए।
स्वाइन फ्लू विशिष्ट उपचार के लिए पंचकोल कषाय, निम्बादि चूर्ण, संजीवनी वटी, त्रिभुवन कीर्ति रस, गोदंति भस्म और गोजिहृदत्वात् औषधियां
स्वाइन फ्लू रोगी को सुबह तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, गिलोय के सम्मिश्रण और मधु से बना काढा देना चाहिए।
रोगियों को दही, शीतलपेय, फ्रिज में रखा बासी भोजन, आईसक्रीम जैसे कफ उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थों से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
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